क्यों रक्षा बंधन के दिन मनाई जाती है नारियल पूर्णिमा?
इस बार रक्षा बंधन का त्योहार यानी कि भद्रपद की पूर्णिमा को राखी का त्योहार मनाया जाता है। जबकि दक्षिण भारत में समुद्री क्षेत्रों में नारियल पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाता है।आज के लेख में हम आपको बताएगे रक्षा बंधन के दिन पड़ने वाली नारियल पूर्णिमा की पांच बाते।
- ऐसा माना जाता है कि भारत के दक्षिण भारत में पश्चिमी घाट के साथ सभी समुद्री क्षेत्रों में हिन्दू कैलेंडर अनुसार भाद्रपद पूर्णिमा को नारियल पूर्णिमा कहा जाता है।
- नारियल पूर्णिमा खासकर सभी मछुआरों का त्योहार होता है। मछुआरे भी मछली पकड़ने की शुरुआत इसी दिन से भगवान इंद्र और वरुण की पूजा करने से करते हैं।
- यह इस दिन वर्षा के देवता इंद्र और समुद्र के देवता वरुण देव की पूजा की जाती है। पूजा के दौरान विधिवत रूप में उन्हें केल के पत्तों को समुद्र किनारे नारियल अर्पित किए जाते हैं। मतलब समुद्र में नारियल फेंके जाते हैं ताकि समुद्र देव हमारी हर प्रकार से रक्षा करें। इसीलिए इस राखी पूर्णिमा को वहां नारियल पूर्णिमा भी कहते हैं।
- समुद्र को अर्पित करने के पूर्व नारियल को पीले वस्त्र और पत्तों से अच्छे से सजाते हैं और फिर उसे जुलूस के रूप में ले जाते हैं। फिर नारियल की शिखा समुद्र की ओर रखकर विधिवत पूजा अर्चुना और मंत्र पढ़ने के बाद अर्पित किया जाता है। इसके उपरांत धूप और दीप किया जाता है। नारियल अर्पण करते समय प्रार्थना करते हैं कि 'हे वरुणदेव आपके रौद्ररूप से हमारी रक्षा हो और आपका आशीर्वाद प्राप्त हो'।
- दक्षिण भारत में यह त्योहार समाज का हर वर्ग अपने अपने तरीके से मनाता है। इस दिन जनेऊ धारण करने वाले अपनी जनेऊ बदलते हैं। इस कारण इस त्योहार को अबित्तम भी कहा जाता है। इसे श्रावणी या ऋषि तर्पण भी कहते हैं।
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