क्या आप भगवान को मानते है या नहीं? जरूर पढ़े
जिसने सभी तरह के धर्म, विज्ञान, धर्मशास्त्र, इतिहास और समाजशास्त्र का अध्ययन किया है या जिसमें थोड़ी-बहुत तार्किक बुद्धि का विकास हो गया है वह प्रत्येक मामले में 'शायद' शब्द का इस्तेमाल करेगा और ईश्वर के मामले में या तो संशयपूर्ण स्थिति में रहेगा या पूर्णत: कहेगा कि ईश्वर का होना एक भ्रम है, छलावा है। इस छल के आधार पर ही दुनिया के तमाम संगठित धर्म को अब तक जिंदा बनाए रखा है, जो कि एक-दूसरे के खिलाफ है।
यह तो हुई उन लोगों की बात जिन्होंने धर्म, दर्शन और अध्यात्म को जाना या पढ़ा इसके बाद यह कहा कि ईश्वर जैसी कोई शक्ति नहीं है। ऐसा उन्होंने क्यों कहां यह जानना भी जरूरी है। लेकिन हमने देखा है कि कई ऐसे लोग हैं जो चार किताबें ज्ञान व विज्ञान की पढ़कर यह मानने लग जाते हैं निश्चित ही ईश्वर नहीं होगा। अक्सर हमने साहित्य और विज्ञान के कई लोगों को देखा है जो ईश्वर को नहीं मानने का ढोंग या दावा करते हैं।
सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत भी नहीं, अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था।
छिपा था क्या कहां, किसने देखा था उस पल तो अगम, अटल जल भी कहां था।
वो था हिरण्य गर्भसृष्टि से पहले विद्यमान, वही तो सारे भूत जाति का स्वामी महान।
दूसरे धर्मों में उल्लेख मिलता है कि ईश्वर एक ही है। उसका एक पुत्र है। उसने सृष्टि की रचना की। वह 7वें आसमान पर रहता है। वह सभी का न्यायकर्ता है। वह फैसला करेगा। वह पापियों को दंड और पुण्य लोगों को स्वर्ग देगा। ऐसी कई बातें हैं, जो ईश्वर को न्यायकर्ता शक्तिशाली पुरुष की तरह प्रस्तुत करती हैं। लेकिन हिन्दू धर्म में ऐसा नहीं है।
हिन्दू धर्मग्रंथ वेद में ईश्वर, परमेश्वर या परमात्मा के संबंध में बहुत ही विस्तार से लिखा हुआ मिलता है। जिसे समझना बहुत ही कठिन नहीं है यदि समझना चाहो तो। वेद 'विद' शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है ज्ञान या जानना, ज्ञाता या जानने वाला; मानना नहीं और न ही मानने वाला। सिर्फ जानने वाला, जानकर जाना-परखा ज्ञान। अनुभूत सत्य।
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