जानिये शीतला अष्टमी के पर्व को बसोरा सोडा क्यों कहा जाता है?
इस बात से बहुत कम लोग वाकिफ है कि शीतला माता का पर्व देश के हर कोने में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। शीतला अष्टमी को कोई माघ शुक्ल की षष्ठी को, कोई वैशाख कृष्ण पक्ष की अष्टमी को तो कोई चैत्र के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाते हैं। शीतला माता हर तरह के तापों का नाश करती है और अपने भक्तों के तन मन को शीतल करती है। वैसे शीतला अष्टमी के पर्व को विशेषकर चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस पर्व को बसौरा या बसौड़ भी कहा जाता है। बसोरा का अर्थ होता है बासी भोजन। शीतला माता की जिस दिन पूजा होती है तब उस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है।
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बसोरा के दिन घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता है। इसके लिए महिलाऐं एक दिन पहले ही भोजन बना कर रख देती है। इसके बाद में दूसरे दिन प्रातः काल महिलाओं द्वारा शीतला माता का पूजन करने के बाद में घर में सभी व्यक्ति बासी भोजन को खाते है। अगर किसी घर में चेचक से कोई बीमार है तो यह व्रत नहीं करना चाहिए।
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हिन्दू व्रतों में केवल शीतला अष्टमी का व्रत ही ऐसा है जिसमे बासी भोजन किया जाता है। अगर इसके बारे में कोई विस्तृत में जानना चाहता है तो विस्तृत उल्लेख पुराणों में मिलता है। शीतला माता का मंदिर वट वृक्ष के पास में होता है। जब शीतला माता का पूजन किया जाता है तो उसके बाद में वट वृक्ष का भी पूजन किया जाता है। पौराणिक समय से ऐसी मान्यता है कि जिस घर की महिलाएं शुद्ध मन से इस व्रत को करती है। उस घर परिवार को शीतला माता धन धान्य से पूर्णकर प्राकृतिक विपदाओं से दूर रखती है।
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शीतला माता कौन है?
स्कंद पुराण में शीतला माता के विषय में विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। इसके अनुसार ऐसा माना गया है कि देवी शीतला चेचक जैसे रोग की देवी हैं, यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन(झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं। शीतला माता के संग ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणुनाशक जल होता है।
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