होने जा रहा है ग्रह परिवर्तन, कैसा रहेगा आपकी राशि पर असर? जानिए कुछ ख़ास बाते!
जैसा की हम जानते है कि ग्रह हर माह परिवर्तित होते है। कुछ ग्रहों को परिवर्तित होने के लिए ऐसा एक माह से भी ज्यादा का समय लगता है। आज के लेख में हम आपको संक्षिप्त में बताते है कि कौनसा गृह कब परिवर्तित होकर शुभ और अशुभ प्रभाव देता है।
सूर्य
यह ग्रह एक राशि में रहने के बाद में दूसरी राशि में गमन करता है। सूर्य जिस भी राशि में रहता है ना उसी आधार पर ही किसी भी जातक की सूर्य राशि निर्धारित होती है। जब सूर्य शनि की राशियों जैसे कि मकर, कुंभ में होता है तो पीड़ित होता है। सिंह राशि का स्वामी सूर्य हमारी जन्मकुंडली में गोचर लग्न राशि से तीसरे, छठे, दसवें और ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है जबकि शेष भावों में सूर्य का फल अशुभ देता है।
चंद्रमा
चन्द्रमा ग्रह प्रत्येक ढाई दिन में एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में जाता है। यह जिस भी राशि में होता है उस आधार पर ही किसी भी जातक की चंद्र राशि निर्धारित होती है। जब यह ग्रह शनि की राशियों में होता है तो बुरा प्रभाव देता है। कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा का गोचर जन्मकुंडली में लग्न राशि से पहले, तीसरे, सातवें, दसवें, और ग्यारहवें भाव में शुभ फल जबकि चौथे, आठवें और बारहवें भाव में चंद्रमा के गोचर का प्रभाव अशुभ होता है।
मंगल
मंगल करीबन डेढ़ माह तक एक राशि में रहता है उसके बाद में दूसरी राशि में जाता है। कभी कभी वक्री होकर यह तीन माह तक रहता है। यह मेष राशि और वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल का गोचर जातक की लग्न राशि से तीसरे, छठे और ग्यारहवे भाव में शुभ और शेष भावों में इसके अशुभ फल होते है।
बुध
बुध ग्रह किसी भी राशि में लगभग 14 दिनों के लिए रहता है। वक्री होकर यह 27 दिन तक रहता है। मिथुन और कन्या राशि का स्वामी बुध का गोचर जन्म कुंडली स्थित लग्न राशि से दूसरे, चौथे, छठे, आठवें, दसवे और ग्यारहवें भाव में शुभ और शेष भावों में अशुभ फल देता है।
बृहस्पति
बृहस्पति यानी कि गुरु ग्रह एक राशि में एक वर्ष तक रहता है। धनु और मीन राशि का स्वामी बृहस्पति का गोचर लग्न राशि से दुसरे, पांचवें, सातवें, नौवें और ग्यारहवें भाव में शुभ और शेष भावों में अशुभ फल होते हैं।
शुक्र
23 दिनों तक के लिए शुक्र ग्रह एक ही राशि में रहता है। शुक्र वक्री होकर के डेढ़ से दो माह तक रहता है। वृषभ और तुला राशि का स्वामी शुक्र ग्रह का गोचर लग्न राशि से पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें, आठवें, नौवें, ग्यारहवें और बारहवें भाव में शुभ और शेष भावों में अशुभ फल देता है।
शनि
शनि को एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने के लिए 30 माह यानी ढाई वर्ष का समय लगता है। मकर और कुंभ राशि का स्वामी शनि का गोचर जन्मकालीन राशि से तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव में शुभ और शेष भावों में अशुभ फल देता है।
राहु
राहु छाया ग्रह है जो एक राशि में डेढ़ वर्ष तक रहता है। राहु का गोचर जन्मकालीन राशि से तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव में शुभ और शेष भावों में अशुभ फल होते हैं।
केतु
केतु भी छाया ग्रह है जो एक राशि में डेढ़ वर्ष तक रहता है। केतु का गोचर जन्माकलीन लग्न राशि से पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें और ग्यारहवें भाव में शुभ और शेष भावों में अशुभ फल देता है।
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