भगवान शिव के पावन श्रावण मास से जुड़ी पौराणिक कथाएं
श्रावण शब्द का अर्थ होता है सुनना, यानी कि किसी धर्म को सुनकर उसको और उसके महत्व को समझना। जो हमारे वेद होते है उनको श्रुति कहा जाता है। यानी कि ऐसा ज्ञान जिसको ईश्वर से सुनकर ऋषियों ने लोगों को या मानव जाती को सुनाया था। श्रावण के महीने को भक्तिभाव और संत्संग के लिए माना जाता है। श्रावण के महीने को लेकर ऐसी बहुत सी कथाएं है जो कि बहुत प्रचलित है। आज के लेख में हम आपको ऐसी ही दो पौराणिक कथाएं बताएगे।
भगवान परशुराम ने किया श्रावण मास में शिवजी की पूजा आरंभ
भगवान परशुराम ने अपने आराध्य देव शिव की इसी माह नियमित पूजन करके कांवड़ में गंगाजल भरकर वे शिव मंदिर ले गए थे और उन्होंने वह जल शिवलिंग पर अर्पित किया था। अर्थात कांवड़ की परंपरा चलाने वाले भगवान परशुराम की पूजा भी श्रावण मास में की जाती है। भगवान परशुराम श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को कांवड़ में जल ले जाकर शिव की पूजा-अर्चना करते थे। शिव को श्रावण का सोमवार विशेष रूप से प्रिय है। श्रावण में भगवान आशुतोष का गंगाजल व पंचामृत से अभिषेक करने से शीतलता मिलती है। कहते हैं कि भगवान परशुराम के कारण ही श्रावण मास में शिवजी का व्रत और पूजन प्रारंभ हुआ।
महादेव के लिए श्रावण माह विशेष क्यों?
जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा, तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रहकर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया जिसके बाद से ही महादेव के लिए यह माह विशेष हो गया।
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